विक्रय तथा विपणन में अंतर
(Difference between Selling and Marketing)
विक्रय एवं विपणन दोनों अलग अलग अवधारणा है लेकिन बहुत सारे लोग इसे एक ही समझते हैं । वास्तविक रूप में देखा जाए तो इन दोनों में गहन भिन्नता है । क्योंकि विपणन का अर्थ विस्तृत है और विक्रय का सूक्ष्म । इसके साथ ही साथ विपणन में विक्रय भी शामिल है । संक्षिप्त रूप में दोनों के बीच के अंतर को इस प्रकार से समझा जा सकता है :-
1. क्षेत्र :- विक्रय का क्षेत्र संकुचित है । जब विक्रय की बात की जाती है तो इसमें केवल विक्रय को ही शामिल किया जाता है, लेकिन विपणन के साथ ऐसा नहीं है । क्योंकि विपणन का क्षेत्र व्यापक है , इसमें विक्रय को शामिल किया जाता है । इसके साथ - साथ विपणन में न केवल विक्रय बल्कि उत्पादन से पूर्व की क्रियाएं, उत्पादन क्रियाएं व विक्रय के बाद की क्रियाएं भी शामिल की जाती हैं ।
2. विशेषता :- विक्रय की दशा में विशेष रूप से बिक्री पर अधिक ध्यान दिया जाता है तथा संस्था के द्वारा बिक्री पर अधिक बल देकर बिक्री बढ़ाने का प्रयास किया जाता है । लेकिन विपणन में ऐसा नहीं है, विपणन की दशा में संस्था के द्वारा उपभोक्ता संतुष्टि पर अधिक जोर दिया जाता है । इसके लिए उपभोक्ता को विक्रय के बाद की सेवा (After Sale Service) भी प्रदान की जाती है । जिसमें गारंटी सेवा भी शामिल है ।
3. उद्देश्य :- विक्रय का मूल उद्देश्य लाभ कमाना होता है अर्थात विक्रय के समय यह देखा जाता है कि व्यवसाय के द्वारा वस्तु को लागत से अधिक कीमत पर बेचा जाए । लेकिन विपणन का उद्देश्य इससे भिन्न है , विपणन क्रिया इस उद्देश्य से किया जाता है कि इससे ग्राहक को संतुष्टि मिले जिससे व्यवसाय को लाभ हो , अर्थात मूल रूप से ग्राहक की संतुष्टि बनाए रखना ही व्यवसाय का मूल उद्देश्य होता है ।
4. प्रारंभिक कार्य :- विक्रय की बात की जाय तो विक्रय का कार्यक्षेत्र कारखाने से प्रारंभ होता है अर्थात उत्पादन के बाद ही विक्रय हो सकता है, लेकिन विपणन का प्रारंभ बाजार से होता है यानी बाजार की आवश्यकताओं या मांग के अनुरूप ही उत्पादन होता है ।
5. अंतिम कार्य :- विक्रय को अंतिम कार्य के रूप में माना जाता है जबकि विपणन हमेशा ही क्रियाशील बना रहता है अर्थात विक्रय के बाद भी विपणन हमेशा चलता रहता है ।
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