पार्षद सीमा नियम से आप क्या समझते हैं ? आशय, परिभाषा, उद्देश्य, विषय वस्तु

पार्षद सीमा नियम से आप क्या समझते हैं ? आशय, परिभाषा,  उद्देश्य, विषय वस्तु 
What is Memorandum of Associations ? Meaning, Definitions, Objectives & Subject Material

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Memorandum of Association


पार्षद सीमा नियम का आशय (Meaning of Memorandum of Associations)

पार्षद सीमा नियम कंपनी का संविधान होता है । जिसमें कंपनी का नाम, कार्यालय, उद्देश्य, दायित्व और पूंजी आदि का विस्तृत वर्णन होता है । पार्षद सीमा के आधार पर ही कंपनी अपनी पूंजी, उद्देश्य और दायित्व का निर्धारण करती है और ये भी तय करती है, कि उसका नाम क्या होगा और उसका पंजीकृत कार्यालय कहां होगा ।

पार्षद सीमा नियम की परिभाषा (Definitions of Memorandum of Associations)

भारतीय कम्पनी अधिनियम की धारा 2(56) के अनुसार :- पार्षद सीमा नियम से तात्पर्य पार्षद नियम से है, जो वास्तविक रूप में समय समय पर वर्तमान कंपनी अधिनियम या फिर किसी पूर्व कंपनी अधिनियम के आधार पर बनाया या संशोधित किया गया हो । 

पार्षद सीमा नियम का उद्देश्य (Objectives of Memorandum of Associations)

उद्देश्य :- कोई भी संस्था नियमों, उद्देश्यों और दायित्वों के आधार पर ही काम करती है । अतः कंपनी के निर्माण के समय भी कंपनी का निर्माण क्यों और किस काम के लिए किया जाए इस सब का निर्धारण भी अति आवश्यक है, तभी कंपनी भविष्य काल में विषय पटल पर नए कीर्तिमान स्थापित कर सकेगी ।

कम्पनी का निर्माण करते समय निम्न उद्देश्यों को ध्यान में रखा जाता है ।

1. उद्देश्य का निर्धारण :- पार्षद सीमा नियम कंपनी के लिए उसके उद्देश्यों के निर्धारण का काम करता है । जिसके बल पर कम्पनी के द्वारा नियम और योजनाएं बनाई जाती हैं । कोई भी कंपनी पार्षद सीमा नियम में वर्णित उद्देश्यों से हटकर कोई कार्य नहीं कर सकती ।

2. कम्पनी का विवरण :- हर अंशधारी या ऋणपत्र वाहक जो सर्वप्रथम निवेश करना चाहता है, उसे कंपनी के बारे में जानने की आवश्यकता होती है । पार्षद सीमा नियम के निर्माण से ऋण पत्र धारकों और अंशधारियों को कंपनी के बारे में पता चल जाता है , जो प्रविवरण जारी करते समय कोई कंपनी प्रविवरण से साथ संलग्न करती है ।

अतः कहा जा सकता है, कि पार्षद सीमा नियम एक सार्वजनिक दस्तावेज है ।

3. अंशधारियों का हित :- पार्षद सीमा नियम के उद्देश वाक्य के अनुसार यह निर्धारित होता है, कि कंपनी इस क्षेत्र में कार्य करने वाली है और उसका भविष्य के लिए क्या योजना है । कोई भी कंपनी अपने उद्देश्यों से हटकर कोई कार्य नहीं कर सकती । पार्षद सीमा नियम के द्वारा अंशधारियों को यह ज्ञात हो जाता है, कि उनका पैसा सही दिशा में इस्तेमाल किया जा रहा है ।


पार्षद सीमा नियम की विषय वस्तु  (Subject Material of Memorandum of Associations)


1. नाम वाक्य - Name Clause
2. पंजीकृत कार्यालय वाक्य - Registered Office Clause
3. उद्देश्य वाक्य - Objective Clause
4. दायित्व वाक्य - Liabilities Clause
5. पूंजी वाक्य - Capital Clause
6. संघ या हस्ताक्षर वाक्य - Association Clause

1. नाम वाक्य - Name Clause :- पार्षद सीमा नियम के नाम वाक्य के द्वारा कंपनी के नाम के बारे में पता चलता है । इस वाक्य में यह दर्शाया जाता है, कि कंपनी का नाम क्या है ।

महत्वपूर्ण बिन्दु :-

1. यह वाक्य कंपनी के नाम की प्रकृति को बताता है ।
2. निजी कंपनी की स्थिति में Pvt.Ltd. शब्द इस्तेमाल किया जाता है ।
3. सार्वजनिक कंपनी की स्थिति में केवल Ltd. शब्द कंपनी के नाम के आगे लगाया जाता है ।
4. एकल व्यक्ति कंपनी की स्थिति में Pvt.Ltd. (OPC) शब्द इस्तेमाल किया जाता है ।
5. कम्पनी का नाम कंपनी के उद्देश्यों और उनके कार्यों के अनुसार होना चाहिए ।
6. अन्य कंपनियों के नामों से मिलता जुलता नाम नहीं होना चाहिए ।


2. पंजीकृत कार्यालय वाक्य - Registered Office Clause :- यह वाक्य कंपनी के पंजीकृत कार्यालय की जानकारी देता है ।
कि...
(a) कंपनी का प्रधान कार्यालय कहां है ।
(b) कंपनी का शाखा कार्यालय कहां है ।


3. उद्देश्य वाक्य - Objective Clause :- उद्देश्य वाक्य कंपनी के उद्देश्यों की जानकारी देता है । इसके अलावा यह वाक्य कंपनी की शक्तियों के बारे में भी बताता है । कंपनी उद्देश्य वाक्य कंपनी की शक्तियों के अधिकार की बात भी करता है, कि कंपनी का अधिकार क्षेत्र क्या है ।

4. दायित्व वाक्य - Liabilities Clause :- दायित्व वाक्य कंपनी के सदस्यों के दायित्व की चर्चा करता है, कि कंपनी के सदस्यों का दायित्व सीमित है या असीमित है ।

इस वाक्य में कंपनी के दायित्वों का निर्धारण इन बातों को ध्यान में रखकर किया जाता है ।

A) असीमित दायित्व वाली कंपनी (Unlimited Liablity Company) :- असीमित दायित्व वाली कंपनियों से तात्पर्य उन कंपनियों से है, जिनमें सदस्यों का दायित्व असीमित होता है |

असीमित दायित्व से तात्पर्य जोखिम उठाने की असीमित क्षमता से है | इसे इस प्रकार से समझना उचित है, कि यदि कोई कंपनी किसी भी प्रकार की वित्तीय अड़चनों में फंस जाए, तो फिर सदस्यों की संपत्ति से कंपनी के दायित्व की भरपाई होती है |

(B) सीमित दायित्व वाली कंपनी :- सीमित दायित्व वाली कंपनी से आशय उन सभी कंपनियों से है, जिनका दायित्व सीमित होता है | 

इस तरह की कंपनियों को दो भागों में वर्गीकृत किया गया है | 
(i) गारंटी के द्वारा सीमित कंपनी (Company limited by guaranty)
(ii) अंशों के द्वारा सीमित कंपनी (Company limited by Shares)


(i) गारंटी के द्वारा सीमित कंपनी (Company limited by guaranty) :- गारंटी के द्वारा सीमित कंपनी से आशय उन कंपनियों से है, जिसमें कंपनी के सदस्य (Member) कोई निश्चित धनराशि (Fixed amount of money) देने की गारंटी देते हैं | 

साधारण शब्दों में समझा जा सकता है, कि जब किसी कंपनी का कोई सदस्य किसी विशेष अनिश्चित काल या फिर कंपनी के समापन के समय कंपनी को एक निश्चित धनराशि देने का वायदा करता है, तो उसे गारंटी के द्वारा सीमित कंपनी की संज्ञा दी जाती है | 

(ii) अंशों के द्वारा सीमित कंपनी (Company limited by Shares) :- अंशों के द्वारा सीमित कंपनी वह कंपनी है, जिसमें कंपनी के सदस्यों के दायित्व को कंपनी की पार्षद सीमा नियम के द्वारा उस स्तर तक सीमित किया जाता है, कि यदि किसी अंशधारी या सदस्य के द्वारा किसी अंश का कुछ रकम चुकाया नही गया है, तो किसी अनिश्चित काल में अंशधारी या सदस्य के ऊपर उसकी व्यक्तिगत संपत्ति बेचने का दायित्व नहीं आएगा |

साधारण भाषा में, यह समझा जा सकता है, कि यदि कोई कंपनी अंशों के द्वारा सीमित है, तो उस कंपनी के पार्षद सीमा नियम (MOA) में वर्णित दायित्व वाक्य (Liability Clause) के अनुसार उस कंपनी का सदस्य अनिश्चित काल में अंशों के चुक्ता न किए गए रकम को चुक्ता करने के लिए उत्तरदायी नहीं होता है, अर्थात् उसे रकम चुक्ता करने के लिए कंपनी की संपत्ति (जमीन, जायदाद) नहीं बेचनी पड़ती | इस तरह की कंपनियों में दो तरह की कंपनियां वर्णित हैं |

(a). निजी कंपनी (Private Company)
(b) सार्वजनिक कंपनी (Public Company)

(a). निजी कंपनी (अंशों के द्वारा सीमित कंपनी के संदर्भ में).(Private Company):- 

1. निजी कंपनी का सदस्य अपने अंशों (Shares) को किसी अन्य व्यक्ति को हस्तांतरित (Transfer) नही कर सकता |
2. इसमें न्यूनतम 2 और अधिकतम 200 सदस्य हो सकते हैं | 
3. निजी कंपनी किसी भी दशा में कभी भी प्रविवरण जारी करके अंश जारी नहीं कर सकती, यह कार्य उसके लिए पूर्ण रूप से निषेध है | 

b) सार्वजनिक कंपनी (Public Company) :-

1. सार्वजनिक कंपनी का अंशधारी अपने अंशों को कभी भी हस्तांतरित कर सकता है | 
2. सार्वजनिक कंपनी में सदस्यों की न्यूनतम संख्या 7 और अधिकतम सदस्यों की कोई सीमा नहीं है |
3. सार्वजनिक कंपनी केंद्र सरकार के अनुमोदन (Approval) से प्रविवरण जारी करने के उपरांत अंश जारी कर सकती है | 

सार्वजनिक कंपनी को दो भागों में बांटा जा सकता है |

1. सूचीबद्ध कंपनी (Listed Company) :- जो शेयर बाजार में सूचीबद्ध हैं | 
2. गैर सूचीबद्ध कंपनी (Unlisted Company) :- जो शेयर बाजार में सूचीबद्ध नहीं हैं |

5. पूंजी वाक्य - Capital Clause :-  पूंजी वाक्य कंपनी के पूंजी संरचना की बात करता है । यह वाक्य बताता है, कि 
(a) कंपनी की अधिकृत पूंजी क्या है ?
(b) कंपनी की अधिकृत पूंजी को कितने स्थिर अंशों में बांटा गया है ।

जिन कंपनियों का अंश नहीं होता वे कंपनियां इस वाक्य को नहीं बनाती या उन्हें इसकी आवश्यकता नहीं पड़ती ।

6. संघ या हस्ताक्षर वाक्य - Association Clause :-  इस वाक्य के अनुसार कंपनी के दस्तावेजों पर किनका हस्ताक्षर होगा, वर्णित होता है । इस वाक्य के अनुसार कंपनी के पास उन सभी अंशधारियों का नाम होता है या इस वाक्य में उन सभी अंशधारियों का नाम वर्णित होता है, जिन्होंने कंपनी का अंश खरीदा है । इसके साथ ही उनका पता और उनके द्वारा कितने अंशों को धारण किया गया है, सब कुछ इस वाक्य में वर्णित होता है ।

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