दीर्घकालीन पूंजी लाभों की गणना करते समय हस्तांतरित संपत्ति के शुद्ध विक्रय मूल्य में से संपत्ति प्राप्त करने तथा संपत्ति में सुधार करने की सूचकांक लागत घटाई जाती है । सूचकांक लागत ज्ञात करने का सूत्र निम्न है :-
Indexed Cost of Acquisition = Cost of Acquisition × Cost Inflation Index of the year in which the asset is transferred/Cost Inflation Index of the year of Acquisition of Asset by assessee of the year beginning on 1.4.2001 (Which is later)
लागत स्फीति सूचकांक (Cost Inflation Index)
केन्द्रीय सरकार द्वारा अब तक सरकारी गजट में घोषित लागत स्फीति सूचकांक इस प्रकार से है :-
सुधार की लागत (Cost of Improvement) - यदि किसी करदाता या संपत्ति के पूर्व स्वामी ने दीर्घकालीन संपत्ति में 31 मार्च 2001 के बाद कुछ वृद्धि की है या बदलाव किया है तो संपत्ति की सुधार सूचकांक लगता की गणना निम्न सूत्र की सहायता से ज्ञात की जाएगी :-
Indexed Cost of Improvement = Cost of Improvement × Cost Inflation indexed of the year in which asset is to be transferred/Cost Inflation Index of the year in which Improvement took place
दीर्घकालीन पूंजी लाभ होने पर भी सूचकांक लागत की गणना न होना (Cases where indexation is not allowed even though there is long term capital gain)
सामान्य रूप से दीर्घकालीन पूंजी लाभ प्राप्त करने हेतु संपत्ति की सूचकांक लागत निकाली जाती है । लेकिन निम्न स्थितियों में संपत्ति के दीर्घकालीन होने पर भी इसकी सूचकांक लागत की गणना नहीं की जाती है । अतः संपत्ति पर लाभ यद्यपि दीर्घकालीन पूंजी लाभ है फिर भी वास्तविक लागत ही विक्रय प्रतिफल में से घटाई जाती है :-
1. दीर्घकालीन बॉन्ड एवं ऋण पत्र (Long term Bonds and Debentures) :- सरकार द्वारा निर्गमित पूंजी सूचकांकित बॉन्ड एवं भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्गमित संप्रभु स्वर्ण बॉन्ड को छोड़कर दीर्घकालीन बॉन्ड एवं ऋण पत्रों की सूचकांक लागत की गणना नहीं की जाती है ।
2. अनिवासी की दशा में अंश व ऋणपत्रों का हस्तांतरण (Transfer of Shares and Debentures in case of Non - resident) :- यदि एक अनिवासी करदाता ने एक भारतीय कंपनी के अंशों/ऋण पत्रों को विदेशी मुद्रा में प्राप्त किया है । इनके हस्तांतरण से उत्पन्न पूंजी लाभ का गणना नहीं की जायेगी ।
3. ह्रासवान संपत्तियाँ (Depreciable Assets) :- ह्रासवान संपत्तियाँ जैसे प्लांट एवं मशीनरी, भवन इत्यादि का हस्तांतरण करने पर पूंजी लाभ ज्ञात करने हेतु सूचकांक लागत की गणना नहीं की जाती है भले ही संपत्ति दीर्घकालीन हो । इन संपत्तियोंं पर सदैव अल्पकालीन पूंजी लाभ होता है ।
4. स्लंप (Slump) बिक्री की विधि से किसी व्यक्ति द्वारा सम्पूर्ण व्यवसाय अथवा उसके किसी भाग का हस्तांतरण।
5. ऑफशोर फंड द्वारा ऐसी यूनिटों का हस्तांतरण जो विदेशी मुद्रा में क्रय की गई हों ।
6. अनिवासी द्वारा विदेशी मुद्रा में क्रय किए गए GDR का हस्तांतरण।
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