अनुबंध के प्रकार बताइए ? (Kinds of Contract in Hindi - Contract Act 1872)

अनुबंध के प्रकार बताइए ?
(Kinds of Contract in Hindi)

Kinds of Contract in Hindi

अनुबंध के प्रकारों को निम्न रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है ।


1. निर्माण अथवा उत्पति के आधार पर 
2. वैधता या प्रवर्तनीयता के आधार पर
3. निष्पादन के आधार पर

निर्माण अथवा उत्पति के आधार पर :- 
1. स्पष्ट अनुबंध (Express Contract)
2. गर्भित अनुबंध (Implied Contract)
3. अर्ध अनुबंध (Quasi Contract)

वैधता के आधार पर :-
1. वैध अनुबंध (Valid Contract)
2. व्यर्थ अनुबंध (Void Contract)
3. व्यर्थ ठहराव (Void Agreement)
4. व्यर्थनीय अनुबंध (Voidable Contract)
5. अवैध अनुबंध (Illegal Contract)
6. अप्रवर्तनीय अनुबंध (Unenforceable Contract)

निष्पादन के आधार पर :- 
1. निष्पादित अनुबंध (Executed Contract)
2. निष्पादनीय अनुबंध (Executory Contract)

अब विस्तार से पढ़िए  .....

निर्माण अथवा उत्पति के आधार पर :- 

1. स्पष्ट अनुबंध (Express Contract) :- दो पक्षों के मध्य कोई अनुबंध जब मौखिक या लिखित रूप में होता है, तो उसे स्पष्ट अनुबंध का नाम दिया जाता है । भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 9 के अनुसार जब किसी भी वचन के लिए प्रस्ताव और स्वीकृति शब्दों में की जाती है, तो उस वचन को स्पष्ट वचन कहा जाता है ।

उदाहरण :- 
लिखित स्पष्ट अनुबंध :- सुरेश को अपने मित्र महेश की कार बहुत पसंद है और वह उसकी कार खरीदना चाहता है । इसके लिए सुरेश अपने मित्र को कार खरीदने का प्रस्ताव प्रस्ताव पत्र भेजता है । इसके जवाब में महेश इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए स्वीकृति पत्र भेजता है । तो इसे स्पष्ट अनुबंध कहा जायेगा । इसे हम स्पष्ट लिखित अनुबंध भी कह सकते हैं ।

मौखिक स्पष्ट अनुबंध :-
मुकेश अपना टीवी मकैनिक को बनाने के लिए कहता है, इस पर मैकेनिक भी मुकेश के प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता है और उसकी टीवी को बनाकर उसे दे देता है, तो इसे भी स्पष्ट अनुबंध कहा जायेगा । इसे हम स्पष्ट मौखिक अनुबंध कह सकते हैं ।


2. गर्भित अनुबंध (Implied Contract) :- जब कोई अनुबंध लिखित या मौखिक रूप में न होकर किसी भी पक्ष के क्रियाकलापों के आधार पर होता है तो उसे गर्भित अनुबंध कहते हैं । भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 9 के अनुसार जब प्रस्ताव एवं स्वीकृति शब्दों के रूप में न होकर अन्य तरीकों से होती है, तो उस वचन को गर्भित वचन का नाम दिया जाता है । गर्भित वचन ही गर्भित अनुबंध के लिए उत्तरदायी है ।

उदाहरण :- बस में यात्रा के दौरान हर व्यक्ति अपने आप उस बस कंडक्टर से अनुबंध कर लेता है, बिना कुछ कहे और बिना कुछ लिखित दिए। इस स्थिति में वह व्यक्ति यात्रा के दौरान यात्रा के बदले उचित किराया देने के लिए बाध्य होता है ।

3. अर्ध अनुबंध (Quasi Contract) :- अर्ध अनुबंध भी गर्भित अनुबंध की तरह ही है। इस अनुबंध की खास बात यह है, कि इस अनुबंध में अनुबंध बनने के आवश्यक लक्षण जैसे - स्वतंत्र सहमति, प्रस्ताव, स्वीकृति, प्रतिफल आदि नहीं होते हैं । इसलिए इसे अर्ध अनुबंध भी कहा जाता है । इस अनुबंध को अनुबंध की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। 

उदाहरण :- श्रुति अपनी सहेली के घर पढ़ने के लिए जाती है । कुछ समय पढ़ाई करने के उपरांत वह घर आ जाती है लेकिन भूलवश उसका फोन उसकी सहेली के घर ही छूट जाता है । इस स्थिति में उसकी सहेली का यह दायित्व बनता है, कि वह श्रुति के फोन को संभालकर रखे और फिर उसे लौटा दे । श्रुति की सहेली के दायित्व को ही इस स्थिति में अर्ध अनुबंध की श्रेणी में रखा जायेगा ।


वैधता के आधार पर :-


1. वैध अनुबंध (Valid Contract) :- ऐसा अनुबंध जो पूरी तरह से वैध अनुबंध के सभी शर्तों को पूरा करता हो तथा अधिनियम की धारा 10 के अनुसार दो पक्षों के द्वारा न्यायालय में प्रवर्तनीय हो, वह वैध अनुबंध कहलाता है । किसी भी तरह से वैध अनुबंध के आवश्यक शर्तों में से कोई एक शर्त भी की पूर्ति नहीं होती तो यह अनुबंध व्यर्थ, व्यर्थनीय या अवैध अनुबंध बन जायेगा ।

2. व्यर्थ अनुबंध (Void Contract) :- भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 2(j) के अनुसार ऐसा अनुबंध जो कानून के द्वारा प्रवर्तनीय न हो उसे व्यर्थ अनुबंध कहते हैं । इस अनुबंध का कभी भी कोई भी वैधानिक प्रभाव नहीं पड़ता अतः इसकी वैधानिकता शून्य या नगण्य होती है । इस अनुबंध के संबंध में यह बात समझा जा सकता है, कि यह अनुबंध प्रारंभ से व्यर्थ नहीं होता जहां से इस अनुबंध की रचना होती है उस पक्ष से यह अनुबंध भी वैध होता है और उस पक्ष को इसके प्रति बाध्य करता है ।

3. व्यर्थ ठहराव (Void Agreement) :- भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 2(g) के अनुसार ऐसा ठहराव जो कानून के द्वारा प्रवर्तनीय न हो, उसे व्यर्थ ठहराव कहा जाता है । इसके उदाहरण के रूप में नाबालिग से ठहराव, बिना प्रतिफल के ठहराव, किसी असंभव कार्य के लिए ठहराव, द्विपक्षीय गलतियों के अंतर्गत किए गए ठहराव आदि को लिया जा सकता है । इस तरह के ठहरावों में कोई भी पक्ष किसी भी पक्ष पर हर्जाने के लिए दावा नहीं कर सकता ।

4. व्यर्थनीय अनुबंध (Voidable Contract) :- भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 2(i) के अनुसार एक ऐसा व्यर्थनीय ठहराव जो एक पक्ष के विकल्प में अधिनियम या कानून के द्वारा प्रवर्तनीय हो, लेकिन किसी अन्य दूसरे पक्ष के के विकल्प में प्रवर्तनीय न हो, व्यर्थनीय अनुबन्ध कहलाता है । अधिनियम की धारा 19 के अनुसार ऐसा अनुबंध जो स्वतन्त्र सहमति से नहीं किया गया है, उसे व्यर्थनीय अनुबंध कहते हैं । 

अन्य शब्दों में कहा जा सकता है कि ऐसा अनुबंध जो किसी के दबाव में, धोखे से, अनुचित प्रभाव या बहकावे में किया गया हो, वह व्यर्थनीय अनुबंध कहा जाता है ।

5. अवैध अनुबंध (Illegal Contract) :- ऐसा अनुबंध जो कानून या विधान के नियमों से बाहर हो उसे अवैध अनुबंध कहते हैं । अन्य शब्दों में कहा जा सकता है कि ऐसा अनुबंध जिसे कानून के द्वारा वैधता प्राप्त न हो, उसे अवैध अनुबंध कहा जाता है ।

6. अप्रवर्तनीय अनुबंध (Unenforceable Contract) :- अप्रवर्तनीय अनुबंध वह अनुबंध है, जो अधिनियम के विशेष प्रावधानों के द्वारा कुछ तकनीकी त्रुटियों या कुछ औपचारिकताओं को छोड़कर वैध होता है । त्रुटियों और औपचारिकताओं में रजिस्ट्रेशन, स्टाम्प और अनुप्रमाण को शामिल किया जा सकता है । अतः यह समझा जा सकता है कि अनुबंध के समय यदि वैध औपचारिकता का ध्यान न रखा जाय तो वह अनुबंध न्यायालय के द्वारा मान्य या वैध नहीं होता है ।

अन्य शब्दों में कहा जा सकता है कि ऐसा अनुबंध जो न्यायालय या अधिनियम के द्वारा वैध या मान्य न हो, उसे अप्रवर्तनीय अनुबंध कहा जाता है ।

निष्पादन के आधार पर :- 


1. निष्पादित अनुबंध (Executed Contract) :- ऐसा अनुबंध जिसमें दोनों पक्षकार अनुबंध के सभी दायित्वों एवं शर्तों को बिना किसी शर्त के पूरा करते हैं, उसे निष्पादित अनुबंध कहते हैं । इस अनुबंध की विशेषता यह है कि अनुबंध के समय इस तरह के अनुबंध में ऐसी कोई शर्त नहीं होती जो अनुबंध के सम्पूर्ण होने में बाधक हो या अनुबंध की वैधता में अवरोधक हो ।

उदाहरण :- A को B की Bike पसंद है, उसने Bike को खरीदने के लिए 20,000 दिए और B ने अपनी Bike को A को दे दिया । इस अनुबंध में कोई भी अवरोधक शर्त नहीं है ।

2. निष्पादनीय अनुबंध (Executory Contract) :- निष्पादनीय अनुबंध वह अनुबंध है जिसमें अनुबंध के सभी शर्त दोनों पक्षकारों के तरफ से पूर्ण रूप से पूरे नहीं होते । अतः कहा जा सकता है कि इस अनुबंध में कुछ शर्त एवं दायित्व शेष रह जाते हैं, इनके आधार पर अनुबंध किया जाय ।

उदाहरण :- A ने B को 10 किलो आम देने का वायदा किया जबकि उसने 5 किलो आम हो दिया । इस अनुबंध में पूर्ण रूप से पूरा नहीं हुआ बल्कि कुछ शर्तों का निष्पादन भविष्य पर छोड़ दिया है ।


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