सकल कुल आय एवं कुल आय
(Gross Total Income & Total Income)
सकल कुल आय (Gross Total Income)
विभिन्न व्यक्तियों एवं संस्थाओं को विभिन्न स्रोतों से आय प्राप्त होती है । उन आय के स्रोतों को आयकर की भाषा में आय के शीर्ष भी कहा जाता है । यदि आय के शीर्षों की बात की जाय तो कुल 5 आय के शीर्ष होते हैं।
1. वेतन से आय
2. मकान संपत्ति से आय
3. व्यापार अथवा पेशे से आय
4. पूँजी लाभ से आय
5. अन्य साधनों/स्रोतों/शीर्षों से आय
जब किसी भी संस्था या व्यक्ति के आयों की गणना की जाती है तो उपरोक्त सभी शीर्षकों के अंतर्गत कर योग्य आय की गणना भारतीय आयकर अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार की जाती है। जब कर योग्य आय की गणना भलीभाँति कर ली जाती है तो सभी आयों का योग किया जाता है या जोड़ा जाता है । आय के इसी योग या जोड़ को ही सकल कुल आय कहा जाता है ।
इस कुल आय की विशेषता यह है कि इसमें से आयकर अधिनियम की धारा 80C से लेकर 80U तक की कटौतियाँ नहीं की गई होती हैं।
यदि किसी करदाता की आय सभी शीर्षकों से नहीं आती है, बल्कि कुछ शीर्षकों से ही आती है तो उसी को सकल कुल आय मान लिया जाता है।
उदाहरण :-
1. वेतन से आय
2. मकान संपत्ति से आय
3. व्यापार अथवा पेशे से आय
4. पूँजी लाभ से आय
5. अन्य साधनों/स्रोतों/शीर्षों से आय
कुल आय (Total Income)
कुल आय, सकल कुल आय में से आयकर अधिनियम की धारा 80C से लेकर 80U तक की कटौतियों को घटाने के उपरांत प्राप्त होती है।
जब किसी भी संस्था या व्यक्ति की कुल आय की गणना की जाती है तो सबसे पहले उसके आय के सभी शीर्षों के हिसाब से सकल कुल आय की गणना की जाती है। जब सकल कुल आय की गणना कर ली जाती है तो उसमें से धारा 80C से लेकर 80U तक की कटौतियों को घटा दिया जाता है । इन धाराओं के अंतर्गत कटौतियों के बाद आयकर के लिए जो राशि बचती है उसे कुल आय कहा जाता है।
आयकर की गणना इसी आय (कुल आय) पर की जाती है। आयकर के लिए कुल आय को धारा 288A के अनुसार ₹10 के निकटतम गणक (in multiple of ₹10) तक पूर्ण (round - off) किया जायेगा।
© ASHISH COMMERCE CLASSES
THANK YOU.
0 Comments
Please do not enter any spam link in the comment box.
Thank you !