विभाज्य लाभ किसे कहते हैं ? (Divisible Profits in Hindi)

विभाज्य लाभ किसे कहते हैं ? 
(Divisible Profits in Hindi)  

vibhajya labh kya hai, विभाज्य लाभ किसे कहते हैं ?  (Divisible Profits in Hindi, vibhajya labh kise kahte hai, divisible profits hindi me, vibhajyalab
(Divisible Profits in Hindi)  

विभाज्य लाभ का अर्थ (Meaning of Divisible Profits)


विभाज्य लाभ से आशय ऐसे लाभ से है जो विशेष रूप से अंशधारियों में वितरित करने के लिए ही होता है ।

कंपनी के द्वारा पूरे वर्ष कमाया गया वह धन जो प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष खर्चों को घटाने के बाद शेष बचता है उसे लाभ कहा जाता है । लेकिन कोई भी कंपनी इस लाभ को पूरा पूरा खर्च नहीं करती है । इस लाभ से कुछ संपत्तियां खरीदी जाती हैं, निवेश किया जाता है अंशधारियों के मध्य उनके लाभांश को बांटा जाता है और इसी लाभ से संचय भी किया जाता है । इस स्थिति में जब विभाज्य लाभ की बात की जाती है तो यह समझा जा सकता है कि कंपनी अपने लाभ के हिस्से से जिस हिस्से को कंपनी के अंशधारियों को उनका लाभांश देती है उसे विभाज्य लाभ कहा जाता है ।

विभाज्य लाभ की परिभाषा (Definition of Divisible Profits)


1. विभाज्य लाभ , कंपनी के लाभ का वह हिस्सा है जो कंपनी के अंशधारियों के मध्य लाभांश के रूप में बांटा जाता है ।
2. सभी लाभ विभाजन योग्य नहीं होते । केवल वे लाभ ही को अंशधारियों में कानूनी तौर पर बांटे जा सकते हैं, विभाजन योग्य लाभ कहलाते हैं ।

विभाज्य लाभ का निर्धारण (Determination of Divisible Profits) 


किसी भी सार्वजनिक कंपनी के विभाज्य लाभ का निर्धारण करते समय निम्न बातों पर ध्यान दिया जाता है :-

1. लाभांश के स्रोत (Sources of Dividend)
2. चालू ह्रास (Current Depreciation)
3. अवशिष्ट ह्रास (Arrears of Depreciation)
4. विगत वर्षों की हानियां (Past yearis Losses)
5. पूंजीगत लाभ (Capital Profits)
6. स्थायी संपत्तियों के मूल्य में वृद्धि (Appreciation in the Value of Fixed Assets)
7. क्षयी संपत्तियों पर ह्रास (Depreciation on Wasting Assets)

विभाज्य लाभ एवं अंकेक्षक (Divisible Profits and Auditor)


किसी भी सार्वजनिक कंपनी के विभाज्य लाभ का अंकेक्षण करते समय अंकेक्षक को निम्न विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए :-

1. उसे कंपनी के पार्षद सीमानियम तथा अंतर्नियम कर लेना चाहिए ।
2. अंकेक्षक को न्यायालय के निर्णयों का अवश्य ही ध्यान रखना चाहिए ।
3. यदि लाभांश के वितरण में नियमों का पालन नहीं किया गया है तो इसका उल्लेख प्रतिवेदन में करना चाहिए ।
4. आयगत लाभ से लाभांश का वितरण करने पर पूंजीगत हानि का आयोजन आवश्यक नहीं है ।
5. अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि आयगत हानियों का अपलेखन आयगत लाभ से तथा पूंजीगत हानियों का अपलेखन पूंजीगत लाभ में से किया गया है या नहीं ।


© ASHISH COMMERCE CLASSES
THANK YOU.

Post a Comment

0 Comments

Close Menu