मिथ्याकथन या मिथ्यावर्णन किसे कहते हैं ? (What is Misrepresentation in Hindi)

    मिथ्याकथन या मिथ्यावर्णन किसे कहते हैं ? 
(What is  Misrepresentation in Hindi)

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मिथ्याकथन या मिथ्यावर्णन का अर्थ (Meaning of Misrepresentation)


मिथ्यावर्णन दो शब्दों का सांयोगिक रूप है, जिसका अर्थ होता है - असत्य वर्णन या झूठ वर्णन । अन्य शब्दों में ऐसे भी कहा जा सकता है कि जब कोई असत्य वर्णन निर्दोष भाव से या जानबूझकर किया जाता है तो उसे मिथ्यावर्णन कहा जाता है । कपट के संदर्भ में हमने जाना था कि जब एक पक्ष किसी दूसरे पक्ष को धोखा देने के उद्देश्य से जानबूझकर असत्य वर्णन करता है तो उसे कपट कहते हैं, लेकिन मिथ्यावर्णन में बिलकुल भी ऐसा नहीं है । मिथ्यावर्णन की स्थिति में असत्य वर्णन अनजाने में निर्दोष भाव से किया जाता है अर्थात इसमें एक पक्ष का दूसरे पक्ष को धोखा देने का कोई इरादा नहीं होता है, बल्कि अनजाने में उसके द्वारा असत्य वर्णन हो जाता है । जब मिथ्यावर्णन होता है तो मिथ्यावर्णन करने वाला व्यक्ति ईमानदारी से वास्तव में उसे सत्य ही मानता है ।

भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872 की धारा 18 के अंतर्गत मिथ्यावर्णन को परिभाषित किया गया है । जिसके अनुसार मिथ्यावर्णन के कार्यों को निम्न तीन भागों में बांटा जा सकता है ।

1. निश्चयात्मक कथन (Positive Assertion)
2. करार भंग (Breach of Duty)
3. करार की विषय के बारे में गलती करा देना ।

मिथ्यावर्णन के अनिवार्य तत्त्व (Elements of Misrepresentation)


1. मिथ्यावर्णन धोखा देने के उद्देश्य से नहीं किया जाता ।
2. अनुबंध में मिथ्यावर्णन महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में होना चाहिए ।
3. वर्णन असत्य होता है, लेकिन वर्णन करने वाला पक्षकार उसकी सत्यता में पूरा विश्वास रखता है ।
4. दूसरे पक्ष को अनुबंध करने के लिए प्रेरित करने के इरादे से मिथ्यावर्णन किया जाना चाहिए तथा दूसरे पक्ष ने वर्णन के आधार पर कार्यवाही की हो ।
5. मिथ्यावर्णन अनुबंध एक पक्षकार के द्वारा दूसरे पक्षकार के समक्ष किया जाना चाहिए ।

मिथ्यावर्णन का प्रभाव (Effect of Misrepresentation)


भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 19 के अनुसार जब किसी पक्षकार की सहमति मिथ्यावर्णन से प्रभावित होती है, तो मिथ्यावर्णन से प्रभावित पक्षकार की ओर से वह अनुबंध पूरी तरह से व्यर्थनीय होता है । इसके संदर्भ में पीड़ित पक्ष को दो तरह के अधिकार प्राप्त होते हैं ।

1. पीड़ित पक्षकार अनुबंध को रद्द कर सकता है । ऐसा अधिकार पीड़ित पक्षकार को केवल उसी स्थिति में प्राप्त होता है जब वह साधारण परिश्रम से सत्य का पता लगाने की स्थिति में न हो ।
2. यदि पीड़ित पक्षकार को उचित लगे तो वह अनुबंध को स्वीकार करके इसके निष्पादन के लिए आग्रह कर सकता है । पीड़ित पक्षकार दूसरे पक्ष को बाध्य कर सकता है, कि उसे इस स्थिति में रखा जाय, जिसमें कि वह वर्णन के सत्य होने पर रहा होता ।


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