गलती (Mistake) किसे कहते हैं ?
What is Mistake in Hindi ?
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Galti kise Kahte hai hindi me |
गलती से तात्पर्य किसी बात के बारे में गलत या भ्रामक विश्वास पैदा करने से है । जब कोई अनुबंध गलती से किया जाता है तो वह अनुबंध पूर्ण रूप से अवैध होता है ।
भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872 के अनुसार गलती को दो भागो में बांटा गया है ।
(i) कानून की गलती
(ii) तथ्य की गलती
कानून की गलती को पुनः दो भागो में बांटा गया है ।
(a) भारतीय कानून की गलती
(b) विदेशी कानून की गलती
तथ्य की गलती को भी दो भागो में बांटा जा सकता है ।
(a) द्विपक्षीय गलती
(b) एकपक्षीय गलती
अब विस्तार से ....
कानून की गलती :-
कानून के संबंध में होने वाली गलतियां कानून की गलतियों में गिनी जाती हैं । जो इस प्रकार से हैं ।
(a) भारतीय कानून की गलती :- देश में हर व्यक्ति से यह अपेक्षा की जाती है कि उन्हें उन सभी नियम कानूनों का ज्ञान हो, जो उन पर लागू होते हैं । अतः एक सामान्य नियम है, कि देश के कानून के संदर्भ में किसी भी गलती को बहाना नहीं माना जायेगा । भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872 की धारा 21 में यह प्रावधान किया गया है कि कोई भी अनुबंध इस कारण व्यर्थनीय नहीं होगा कि वह भारत में प्रचलित किसी कानून में गलती के कारण हुआ है । अतः कहा जा सकता है कि भारतीय कानून संबंधी गलती का किसी अनुबंध की वैधता पर कोई फर्क नहीं पड़ता ।
(b) विदेशी कानून की गलती :- देश में हर व्यक्ति से यह अपेक्षा तो की जाती है कि वह अपने देश के कानूनों के बारे में जानकारी रखे, लेकिन उससे इस बात की तनिक भी आशा नहीं रखी जाती कि वह दूसरे देशों के कानूनों की भी जानकारी रखे । इसके संदर्भ में एक नियम है कि " कानून की अज्ञानता का बहाना कोई बहाना नहीं है । विदेशी कानून के संदर्भ में किसी भी गलती को तथ्य में की गई गलतियों के समान समझा जाता है ।
तथ्य संबंधी गलती :-
तथ्य के संदर्भ में होने वाली गलतियां तथ्य की गलतियों में गिनी जाती हैं । ये निम्न प्रकार की होती हैं ।
(a) द्विपक्षीय गलती : अनुबंध के समय जब अनुबंध करने वाले दोनों पक्षकार अनुबंध के किसी अनिवार्य तथ्य के बारे में कोई गलती करते हैं, तो उसे द्विपक्षीय तथ्य की गलती कहते हैं । इस संबंध में वास्तविक रूप में कोई अनुबंध होता ही नहीं, क्योंकि दोनों पक्षों में ही सहमति का अभाव होता है
। भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 20 के अनुसार जब दोनों पक्ष अनुबंध के किसी महत्वपूर्ण तथ्य के बारे में गलती करती हैं तो इस स्थिति में अनुबंध को व्यर्थ माना जाता है । अतः इस धारा के अंतर्गत किसी अनुबंध को व्यर्थ घोषित करने के लिए निम्नलिखित तीन शर्तों को पूरा करना अति आवश्यक हो जाता है ।
1. गलती दोनों पक्षकारों में हो ।
2. गलती तथ्यों को हो ।
3. गलती महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में हो ।
(b) एकपक्षीय गलती :- एकपक्षीय गलती से तात्पर्य अनुबंध केवल एक ही पक्ष की गलती हो । सामान्य रूप से एकपक्षीय गलतियों के द्वारा किया गया अनुबंध व्यर्थ होता है । भारतीय अनुबंध अधिनियम 1872 की धारा 22 के अनुसार कोई अनुबंध केवल इस कारण व्यर्थनीय नहीं होता कि उसके एक पक्षकार तथ्य संबंधी गलती करता है । यदि कोई व्यक्ति अनुबंध करने से पहले यह नहीं देखता या सोचता कि वह क्या कर रहा है, तो इस स्थिति में इस असावधानी या लापरवाही का परिणाम उसे स्वयं भोगना पड़ेगा ।
कुछ परिस्थितियों में एकपक्षीय गलती इतनी मूलभूत हो सकती है कि वह अनुबंध की प्रकृति को भी प्रभावित कर सकती है । ऐसी दशा में होने वाला अनुबंध व्यर्थ होता है ।
गलती का प्रभाव (Effect of Mistake)
1. द्विपक्षीय गलती के संदर्भ में दोनों पक्षकारों के द्वारा की गई गलतियों पर अनुबंध व्यर्थ होता है ।
2. एकपक्षीय गलती के संदर्भ में अधिकांश परिस्थितियों में अनुबंध व्यर्थ नहीं होता । लेकिन जब एकपक्षीय गलती पक्षकारों की सहमति पर हावी हो जाती है, तो अनुबंध को व्यर्थ माना जाता है ।
3. इस प्रकार के अनुबंध में प्राप्त लाभ को पुनः लौटाना पड़ता है और साथ ही साथ मुआवजा भी देना पड़ता है ।
4. यदि किसी व्यक्ति को कोई वस्तु या धन गलती से दिया गया हो तो उसे वापस लौटाना पड़ता है ।
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