ऋणपत्रों के शोधन की विधियाँ (Method of Redemption of Debentures)

ऋणपत्रों के शोधन की विधियाँ 
(Method of Redemption of Debentures)

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Method of Redemption of Debentures


 भारतीय कंपनी अधिनियम के अनुसार के ऋणपत्रों के शोधन की निम्न विधियाँ हैं :- 

1. एकमुश्त भुगतान विधि (Lump-sum Payment Method) :- एकमुश्त भुगतान विधि के अन्तर्गत कंपनी ऋणपत्र के माध्यम से ऋण लेने की अवधि की समाप्ति के बाद ऋणपत्रधारियों को कुल राशि एकमुश्त देकर ऋणपत्रों का शोधन कर देती है। इस विधि के अनुसार ऋणपत्रों का लाभों में से भुगतान किया जाता है। 

2. वार्षिक किश्त भुगतान विधि (Annual Installments Payment Methods) :- वार्षिक किश्त भुगतान विधि के अंतर्गत ऋणपत्रों की अवधि के दौरान ही प्रत्येक वर्ष के अंत में इनका शोधन किया जाता है। इसके अनुसार ऋणपत्रों के दायित्व की कुछ राशि को वर्षों की संख्या से भाग देकर किस्त की राशि निकाली जाती है। किन ऋणपत्रधारियों के ऋणपत्रों का भुगतान पहले वर्ष में किया जायेगा और किनका दूसरे, तीसरे, चौथे वर्ष किया जायेगा -- इस समस्या के समाधान के लिए लॉटरी पद्धति (Lottery System) का प्रयोग किया जाता है। लॉटरी विधि का प्रयोग तब तक किया जाता है जब तक कि संपूर्ण 
ऋणपत्रों का शोधन नहीं हो जाता है। इस विधि में ऋणपत्रों का लाभों में से भुगतान (Payment out of Profits) किया जाता है। 


3. खुले बाजार में क्रय विधि (Purchase in the Open Market Method) :- जब कोई सार्वजनिक कंपनी ऋणपत्रों को बाजार से उन्हें रद्द करने के उद्देश्य से खरीदती है तो ऋणपत्रों के इस क्रय और रद्द करने की प्रक्रिया को ही खुले बाजार से क्रय द्वारा ऋणपत्रों का शोधन कहते हैं । जब कोई कंपनी अपने ऋणपत्रों को खुले बाजार से खरीदती है तो क्रय करके या तो उन्हें तुरंत रद्द कर देती है या उन्हें निवेश के रूप में रखती है। 


4. परिवर्तन विधि (Conversion Method) :- जब कोई सार्वजनिक कंपनी ऋणपत्रों के शोधन की प्रक्रिया में ऋणपत्रों का शोधन नये समता अंशों तथा ऋणपत्रों के निर्गमन से करती है तो शोधन की इस विधि को परिवर्तन विधि कहते हैं। शोधन की प्रक्रिया में नये समता अंश तथा नये ऋणपत्र सममूल्य या प्रीमियम या छुट पर निर्गमित किये जाते हैं । 

5. एक निर्धारित अवधि के बाद भुगतान : शोधन कोष विधि (Payment after a Fixed Period : Sinking Fund Method) :- कंपनी के द्वारा ऋणपत्रों के शोधन के उद्देश्य से एक निर्धारित अवधि के बाद ऋणपत्रों का एकमुश्त भुगतान करने हेतु प्रतिवर्ष ' लाभ - हानि खाता ' के आधिक्य से एक निश्चित धनराशि हस्तानांतरित करके ' शोधन कोष ' बनाया जाता है। इस कोष में विनियोजित राशि को बाह्य प्रतिभूतियों में निवेशित कर दिया जाता है। इसके साथ बाह्य प्रतिभूतियों से जो ब्याज प्राप्त होता है उसको भी बाह्य प्रतिभूतियों में निवेशित कर दिया जाता है। जब ऋणपत्रों का शोधन करना होता है तो निवेशों को बेचा जाता है और प्राप्त राशि का प्रयोग ऋणपत्रों के शोधन में कर दिया जाता है । 

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