स्वतन्त्र सहमति किसे कहते हैं ? (What is Free Consent in Hindi)

 स्वतन्त्र सहमति किसे कहते हैं ? 
(What is Free Consent in Hindi)
 
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What is Free Consent in Hindi
 

स्वतंत्र सहमति दो शब्दों स्वतंत्र और सहमति का सम्मिलित रूप है, जिसका अर्थ होता है स्वतंत्र रूप से सहमति । अतः कहा जा सकता है कि स्वतंत्र सहमति से तात्पर्य विचारों की स्वतंत्र सहमति से है ।

स्वतंत्र सहमति को समझने से पूर्व ये समझना उचित हो जाता है, कि सहमति क्या होता है ?


सहमति का अर्थ  :- Meaning of Consent


• सहमति (Consent) :- अनुबंध अधिनियम की धारा 13 के अनुसार जब दो या दो से अधिक व्यक्ति किसी एक विषय पर अपनी सहमति देते हैं या फिर किसी एक विषय पर उनके विचार समान होते हैं तो उसे सहमति कहते हैं ।

या 

जब दो या दो से अधिक व्यक्ति किसी एक विषय पर एक कैसा विचार रखते हैं तो उसे सहमति कहते हैं ।

इसके विपरित यह कहा जा सकता है, कि जब दो या दो से अधिक व्यक्तियों में अनुबंध हो रहा हो और जिस विषय के मद्देनजर अनुबंध किया जा रहा है उस विषय पे वे पक्षकार समान विचार नहीं रखते हैं तो इस स्थिति को सहमति का न होना कहते हैं ।

किसी भी अनुबंध को करते समय शारीरिक और मानसिक दोनों स्थितियों में दोनों पक्षकार सहमत होने चाहिए । किसी भी तरह से यदि अनुबंध में अनुबंध की शर्तों के अनुसार अनुबंध करने वाले पक्षकार सहमत नहीं हैं, तो उस अनुबंध को व्यर्थ अनुबंध माना जाएगा ।

सहमति के संदर्भ में निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है, कि बिना सहमति के अनुबंध नहीं हो सकता ।


स्वतंत्र सहमति का अर्थ  :- Meaning of Free Consent


• स्वतंत्र सहमति :- स्वतंत्र सहमति से तात्पर्य ऐसी सहमति से है जिसमें किसी भी तरह से दबाव न हो, जो अनुबंध को किसी भी तरह से प्रभावित न करे । स्वतंत्र सहमति ही वास्तविक सहमति से जो एक वैध अनुबंध के लिए आवश्यक है । जब कोई सहमति स्वतंत्र रूप से न होकर किसी के दबाव में आकर दी जाती है तो उसके फलस्वरूप होने वाला अनुबंध व्यर्थनीय होता है । इसके अलावा किसी गलतीवश यदि सहमति में अवरोध उत्पन्न होता है, तो उसे व्यर्थ ठहराव कहते हैं ।

अनुबंध अधिनियम की धारा 14 के अनुसार :- सहमति तब स्वतंत्र होती है जब सहमति निम्न कारणों से न हो ....

1. उत्पीड़न
2. अनुचित प्रभाव
3. धोखा या कपट
4. गलती
5. मिथ्या कथन

इन सभी के द्वारा यदि कोई अनुबंध होता है तो वह अनुबंध अवास्तविक होता है और उसमें स्वतंत्र सहमति का अभाव होता है । 

सहमति को दो स्थितियों में समझा जा सकता है ।
1. जब सहमति न हो :- इस स्थिति में अनुबंध व्यर्थनीय हो जाता है ।
2. जब सहमति उत्पीड़न, अनुचित प्रभाव, धोखा या कपट, गलती या मिथ्या कथन के आधार पर हो :- इस स्थिति में अनुबंध अवैध हो जाता है ।

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