अनुबंध का समापन किसे कहते हैं ? (Discharge of a Contract in Hindi)

अनुबंध का समापन किसे कहते हैं ?
 (Discharge of a Contract in Hindi)

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वैध अनुबंध में प्रमुख गुण यह है कि यह अनुबंध के दोनों पक्षकारों के मध्य कुछ अधिकारों एवं दायित्वों का सृजन करता है । इस अनुबंध के द्वारा सृजित दायित्वों की समाप्ति हो जाने पर यह अनुबंध भी समाप्त हो जाता है । अतः पक्षकारों के उत्तरदायित्व से मुक्त होने को ही अनुबंध की समाप्ति कहते हैं । 

अनुबंधों का समापन निम्न तरीकों से होता है ।

1. निष्पादन के द्वारा (By performance) 
2. पारस्परिक सहमति के द्वारा (By mutual Agreement of consent)
3. निष्पादन की असंभवता के द्वारा (By impossibility of performance)
4. किसी विधान के कार्यशील होने पर (By Operation of Law)
5. निर्धारित अवधि के बीत जाने पर (By lapse of time)
6. अनुबंध के खंडन द्वारा (By Breach of Contract)

अब विस्तार से .....


1. निष्पादन के द्वारा (By performance) :- अनुबंध के निष्पादन से तात्पर्य अनुबंध में वर्णित नियमों एवं शर्तों के आधार पर अनुबंध के दोनों पक्षकारों के द्वारा अपने अपने दायित्वों का सही तरीके से निर्वहन करने से है । यदि दोनों पक्षकारों अनुबंध के नियमों से विपरीत कार्य किया जाता है तो अनुबंध समाप्त हो जाता है ।

2. पारस्परिक सहमति के द्वारा (By mutual Agreement of consent) :- यह सामान्य बात है कि अनुबंध हमेशा दो पक्षकारों की आपसी सहमति के आधार पर होता है । इसलिए जब ऐसी आवश्यकता आन पड़ती है कि अनुबंध को समाप्त कर दिया जाए तो दोनों पक्षकार आपसी सहमति के आधार पर अनुबंध को समाप्त कर देते हैं । यह आपसी अनुबंध गर्भीत या स्पष्ट दोनों तरह का हो सकता है । पारस्परिक सहमति से अनुबंध को निम्न में से किसी एक तरीके से समाप्त किया जा सकता है ।

(i) नवीयन के द्वारा (By Novation) :- इसके अंतर्गत किसी भी विद्यमान अनुबंध के स्थान पर नया अनुबंध किया जाता है । इसमें प्रतिस्थापित अनुबंध उन्हीं पुराने पक्षकारों के मध्य या फिर नए पक्षकारों के साथ किया जाता है । मूल अनुबंध की समाप्ति नए अनुबंध के प्रतिफल होती है ।

(ii) निरस्तीकरण के द्वारा (By Rescission) :- निरस्तीकरण से तात्पर्य अनुबंध को रद्द करने से है । जब कभी अनुबंध के पक्षकार आपसी सहमति के फलस्वरूप अनुबंध को समाप्त करने के लिए सहमत हो जाते हैं तो अनुबंध को समाप्त कर दिया जाता है या अनुबंध समाप्त हो जाता है । अनुबंध के निष्पादन की तारीख से पहले भी इसका बिखंडन किया जा सकता है ।

(iii) परिवर्तन के द्वारा (By Alteration) :- जब कभी अनुबंध के पक्षकारों के द्वारा अनुबंध के एक या अधिक शर्तों में परिवर्तन किया जाता है, तो उसे अनुबंध में परिवर्तन कहते हैं । जब अनुबंध में परिवर्तन होता है तो मूल अनुबंध समाप्त हो जाता है और नए अनुबंध का निर्माण होता है । परिवर्तन की दशा में केवल अनुबंध की शर्तों में बदलाव होता है, न कि पक्षकारों में । इसके विपरित नवीयन में पक्षकारों में भी परिवर्तन होता है ।

(iv) छूट के द्वारा (By Remission) :- अनुबंध में छूट से तात्पर्य अनुबंध के अंतर्गत देय राशि से कम राशि या दिए गए वचन से कम कार्य को स्वीकार कर लिया जाए । भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 63 के अनुसार प्रत्येक वचनग्रहीता ....
(a) दिए गए वचन के निष्पादन में पूर्ण या आंशिक छूट दे सकता है, या
(b) निष्पादन के समय में वृद्धि कर सकता है, या
(c) उसके स्थान पर कोई अन्य निष्पादन कर सकता है ।

(V) त्याग के द्वारा (By Waiver) :- अनुबंध में त्याग से तात्पर्य पक्षकारों के द्वारा अधिकारों को जानबूझकर त्याग देने से है । इस दशा में एक पक्ष अपने अधिकारों का परित्याग करता है तो दूसरा पक्ष अपने दायित्वों से मुक्त हो जाता है । 

3. निष्पादन की असंभवता के द्वारा (By impossibility of performance) :- किसी भी अनुबंध की वैधता के लिए उस अनुबंध का निष्पादन अति आवश्यक है । लेकिन कई बार कुछ परिस्थितियों एवं घटनाओं के फलस्वरूप परिस्थितियां पक्षकारों के नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं, जिसके फलस्वरूप निष्पादन असंभव हो जाता है । ऐसी स्थिति में असंभवता के आधार पर अनुबंध को समाप्त हुआ समझा जाता है ।

असंभवता दो प्रकार की होती है, प्रारंभिक एवम आकस्मिक असंभवता ।

 4. किसी विधान के कार्यशील होने पर (By Operation of Law) :- किसी विधान के कार्यशील होने पर अनुबंध निम्न परिस्थितियों में समाप्त हो सकता है । 

(i) वचनदाता की मृत्यु पर 
(ii) दिवालियापन पर 
(iii) विलय पर 
(iv) किसी महत्वपूर्ण परिवर्तन पर 


5. निर्धारित अवधि के बीत जाने पर (By lapse of time) :- किसी भी अनुबंध के अंतर्गत अधिकारों एवम दायित्वों को बस एक निश्चित अवधि के भीतर ही परिवर्तित किया जा सकता है, जिसे परिसीमा अवधि कहते हैं । अधिनियम में विभिन्न अनुबंधों में परिसीमा की अवधि निर्धारित की गई है ।

6. अनुबंध के खंडन द्वारा (By Breach of Contract) :- किसी भी अनुबंध के निर्माण के समय सभी पक्षकारों से यह आशा की जाती है कि जब तक सभी पक्षकारों को अनुबंध से मुक्त न कर दिया जाय तब तक वे इसका पालन करेंगे । लेकिन जब कोई पक्षकार अपने दायित्वों को न समझते हुए अनुबंध की शर्तों का पालन नहीं करता तो इसे अनुबंध का भंग होना कहते हैं । कोई भी अनुबंध दो प्रकार से भंग होता है ....

(i) वास्तविक भंग (actual breach)
(ii) प्रत्याशित या समय से पूर्व भंग (anticipatory breach)


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