आंतरिक प्रबंध का सिद्धांत किसे कहते हैं ? (Doctorine of Indoor Management in Hindi)

आंतरिक प्रबंध का सिद्धांत किसे कहते हैं ?
 (Doctorine of Indoor Management in Hindi)

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Antarik Prabandh ka Siddhant Hindi Me

भारतीय कंपनी अधिनियम 2013 के अनुसार कंपनी के साथ लेन देन करने वाले व्यक्ति या संस्था को कंपनी के बारे में जानने का पूर्ण अधिकार है । जिसके लिए पार्षद सीमा नियम तथा पार्षद अंतर्नियम का सहारा लिया जाता है । परंतु किसी भी बाहरी व्यक्ति या संस्था को यह जानने का कतई अधिकार नहीं है, कि कंपनी आंतरिक रूप से कैसे कार्य कर रही है । हर व्यक्ति या संस्था जो कंपनी के साथ लेन देन कर रहा है वह मानकर चलता है कि कंपनी के सभी कार्य उसके अंतर्नियम के अनुसार ही हो रहे हैं । इसी को आंतरिक प्रबंध का सिद्धांत कहते हैं । आंतरिक प्रबंध का सिद्धांत (Doctorine of Indoor Management) आन्वयिक सूचना (Constructive Notice) का अपवाद है । 

Case Law 


रॉयल ब्रिटिश बैंक बनाम टारक्वांड (1856) 119 ER 886 

इस केस लॉ के द्वारा ही आंतरिक प्रबंध का सिद्धांत प्रतिपादित हुआ । इस केस में दो पक्षकार हैं पहला रॉयल ब्रिटिश बैंक और दूसरा टारक्वांड । रॉयल ब्रिटिश बैंक के निदेशकों के पास यह अधिकार था कि वे मार्केट से धन जुटा सकते हैं लेकिन कितना ? यह सुनिश्चित नहीं था । लेकिन कंपनी के निदेशकों ने 2000 पाउंड के बॉन्ड जारी कर दिए । जबकि कंपनी के निदेशकों को इसका अधिकार नहीं था । बॉन्ड जारी करने के अड़चनों के उपरांत जब कंपनी ने अंशधारियों से इसके अनुमोदन की याचना की तो अंशधारियों से अनुमोदन नहीं मिला । इस केस लॉ में न्यायालय ने कहा कि बाहरी व्यक्तियों को किसी भी तरह से नहीं पता होता कि कंपनी में आंतरिक रूप से कैसे कार्य हो रहे हैं और न्यायालय ने कंपनी को बॉन्ड के जरिए जुटाए धन को वापस करने की आज्ञा दी ।


आंतरिक प्रबंध के सिद्धांत का अपवाद :- Exception of Doctorine of Indoor Management


(1) अनियमितता का ज्ञान (Knowledge of Irregulation) :- इसके अनुसार कंपनी के बाहरी व्यक्तियों या संस्थाओं को कंपनी के भीतर की अनियमितताओं की जानकारी रहती है ।

(2) लापरवाही (Negligence) :- यदि कंपनी के साथ काम करने वाला कोई व्यक्ति किसी अनुबंध के इर्द-गिर्द घूमती परिस्थितियों के बारे में संदेहास्पद है, तो वह इसकी जांच करेगा। यदि वह पूछताछ करने में विफल रहता है, तो वह इस नियम पर भरोसा नहीं कर सकता।

(3) जालसाजी (Forgery) :- यदि कम्पनी से व्यवहार करने वाला व्यक्ति किसी प्रलेख पर "निर्भर रहा है जिसमें कि जालसाजी की गयी है, तो आन्तरिक प्रबन्ध सिद्धान्त लागू नहीं होता क्योंकि कम्पनी कभी भी अपने अधिकारियों द्वारा की गयी जालसाजी के लिये उत्तरदायी नहीं होती ।

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